Veda Vachanam

Today's Veda Mantra

त꣢वा꣣ह꣡ꣳ सो꣢म रारण स꣣ख्य꣡ इ꣢न्दो दि꣣वे꣡दि꣢वे ।
पु꣣रूणि꣢ बभ्रो꣣ नि꣡ च꣢रन्ति꣣ मा꣡मव꣢꣯ प꣣रिधी꣢꣫ꣳरति꣣ ता꣡ꣳइ꣢हि ॥
(सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 922 | (कौथोम) 3 » 1 » 11 » 1 | (रानायाणीय) 5 » 4 » 2 » 1 

తవాహꣳ సోమ రారణ సఖ్య ఇంద్రో దివేదివే ।
పురూణి బభ్రో ని చరన్తి మామవే పరిధీꣳరతి తాꣳఇహి ।।


पदार्थान्वयभाषाः -

हे (इन्दो) विद्यारस से सराबोर करनेवाले, तेजस्वी (सोम) विद्यारस के भण्डार आचार्य ! (अहम्) मैं शिष्य (तव सख्ये) आपकी मैत्री में (दिवे दिवे) प्रतिदिन (रारण) वेदादि शास्त्रों का उच्चारण करता हूँ। हे (बभ्रो) सब शिष्यों का भरण-पोषण करनेवाले आचार्य! (पुरूणि) बहुत से दोष (माम्)मुझ शिष्य को (नि अव चरन्ति) कष्ट दे रहे हैं, (परिधीन् तान्) चारों ओर से घेरनेवाले उन दोषों को (अति इहि) दूर कर दीजिए ॥१॥

भावार्थभाषाः -

गुरुओं का यह कतर्व्य है कि वे शिष्यों में उत्पन्न हुए दोषों को दूर करके उन्हें निर्मल चरित्रवाला और विद्वान् बनायें ॥१॥